
Bikaner honored football coach Vikram Singh Rajvi
चार लाइन न्यूज़ डेस्क – राजस्थान का सुदूर इलाका बीकानेर, जहां मूलभूत सुविधाओं से दूर गांवों में से स्टेट और नेशनल फुटबॉलर खिलाड़ी और वो भी गांव की बेटियां बनने की शायद ही कोई कल्पना भी करे लेकिन भारतीय फुटबॉल टीम के पूर्व कप्तान, अर्जुन अवार्डी एवं राजस्थान फुटबॉल के ब्रांड एम्बेसडर मगनसिंह राजवी के पुत्र और भारतीय रेलवे के कर्मचारी विक्रम सिंह राजवी की जिद्द, जूनून और हौसले से यह मुमकिन हो सका. शिक्षक दिवस पर charlinerajasthan.com लेकर आया है फुटबॉलर व अंडर-17 नेशनल फुटबॉल चैंपियनशिप जीतने वाली राजस्थान फुटबॉल टीम के कोच विक्रम सिंह राजवी की संघर्ष भरी दास्तां.
शिक्षक दिवस पर फुटबॉल कोच विक्रम सिंह राजवी का जिक्र इसलिए है क्योंकि उन्होंने लीक से हटकर कार्य करने का हौसला रखा और लगातार अपने जोश, जज्बे, लगन से अपने लक्ष्य को पाने के लिए एक शुरुआत की. राजवी ने अपने पिता भारतीय फुटबॉल टीम के पूर्व कप्तान, अर्जुन अवार्डी एवं राजस्थान फुटबॉल के ब्रांड एम्बेसडर मगनसिंह राजवी के नाम से गांव में ही गर्ल्स फुटबॉल एकेडमी खोलकर गांव के बेटियों को फुटबॉल चैम्पियन बनाने की ठानी. राजवी की इस जिद्द की बदौलत जिस माटी से शौर्य की गाथाएं लिखी जाती रही हैं, उसी माटी की बेटियों ने फुटबॉल जैसे खेल में राजस्थान को सिरमौर बना दिया.


राजवी अपने संघर्ष की कहानी बताते हुए कहते हैं कि यह सब आसान नहीं था. पशुपालन-खेती करते किसान परिवारों की बेटियों को घर से निकालकर फुटबॉल ग्राउंड तक ले जाना. लेकिन अपने पिता और खुद के फुटबॉल के जुनून के चलते गांव में अपने पिता के नाम से एक अकादमी शुरू की. गांव में एक-एक घर जाकर उन्होंने गांव वालों से फुटबॉल खेलने के लिए प्रेरित किया. इसके बाद उन्होंने गांव में बकरियां चराने वाले बच्चों को फुटबॉल सिखाने का फैसला किया. गांव से वे बाइक पर कुछ बच्चों को लेकर मैदान पर लाते, उन्हें फुटबॉल की प्रैक्टिस करवाते. आधे बच्चे तो दूसरे दिन आते ही नहीं थे, जबकि सभी को फुटबॉल फ्री में सिखा रहे थे. फिर धीरे-धीरे बच्चों का इंटरेस्ट बढ़ा तो वे आने लगे. अब कुछ लड़कियां भी फुटबॉल खेलने आने लगीं.
राजवी कहते हैं कि आज करीब 6 साल बाद उनके संघर्ष को एक मुकाम मिला है. शुरुआत में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा. लड़कियों को सूट-सलवार में फुटबॉल खेलने में परेशानी होती थी. उनके लिए प्लेयर्स की ड्रेस खरीदी. ग्रामीणों ने लड़कियों के शॉट्र्स पहनने पर रोक लगा दी. कोच ने फिर खुद एक-एक घर जाकर परिवार वालों को समझाना पड़ा. पहले इस गांव के लोग फुटबॉल खेलने के लिए बच्चों को भेजने के लिए तैयार नहीं हुई, लेकिन धीरे-धीरे उनका संघर्ष काम आया और आज गांव के साधारण मजदूर, चरवाहे और श्रमिक की बेटियां अकादमी में ट्रेनिंग ले रहीं हैं.
भारतीय रेलवे के कर्मचारी विक्रम सिंह राजवी ने आगे बताते हैं कि सपना पूरा करने वे 2021 में गांव आ गए. आज से पांच-छह साल पहले तो उन्हें यहां खिलाड़ी भी नहीं मिले थे. खेलने के लिए उन्होंने लड़कियों को लड़कों वाली ड्रेस दी तो गांव वाले विरोध में उतर आए. फिर उन्होंने सबकी सोच बदली और आज पूरा गांव बेटियों पर गर्व कर रहा है. 250 घरों के गांव में करीब 200 फुटबॉल प्लेयर बन चुके हैं. चैंपियन टीम की खिलाड़ी भी इन्हीं परिवारों से है, जिनमें किसी के पिता मजदूर हैं तो किसी खिलाड़ी के पिता गांव में ही बकरी चराने का काम करते हैं.
आज बीकानेर का ढिंगसरी गांव का नाम गांव की बेटियों की लगन, मेहनत और जूनून की बदौलत देश में रोशन हो गया. चैंपियन बनकर जब खिलाड़ी व कोच गांव लौटे, तो उनका हीरो जैसा स्वागत हुआ. आज तो हर कोई अब ढिंगसरी गांव की तरफ दौड़ रहा है इन बेटियों का स्वागत करने. बेटियों की मेहनत का ही नतीजा है कि अब यहां पर जन सहयोग से भी खेल सुविधाएं विकसित हो रही है.
राजवी बताते हैं कि रेलवे की नौकरी से मिलने वाली तनख्वाह का करीब आधे से ज्यादा हिस्सा इन बेटियों को तैयार करने में चला जाता. कभी उन्होंने सिर्फ चने खाकर गुजारा किया तो कभी भूखे ही रहकर. वे बताते हैं कि जैसे-तैसे रूपए की बजट करने की जद्दौजहद में उन्होंने कार तक का इस्तेमाल बंद किया और मोटरसाइकिल से सफर करने लगे. अपने संघर्ष की कहानी सुनाते-सुनाते राजवी भावुक हो गए और आसूं भी टपकने लगे हैं. लेकिन ये आंसू खुशी के, उस संघर्ष की जीत हैं हैं जिसकी बदौलत आज फुटबॉल आइकॉन मगन सिंह राजवी गर्ल्स फुटबॉल एकेडमी में तैयार 44 बेटियां नेशनल चैम्पियन बनी तो वहीं गांव की 15 फुटबॉलर बेटियों का एडमिशन कोटा की गर्ल्स फुटबॉल एकेडमी में हुआ. हाल ही में है अंडर-17 नेशनल फुटबॉल चैंपियनशिप में कर्नाटक को हराकर चालीस साल बाद ये खिताब जीता है. कोच विक्रम सिंह राजवी और अभिषेक विंसेंट की अगुवाई में बीकानेर के ढिंगसरी गांव की 12 बेटियों समेत 22 खिलाड़ियों ने टीम में शानदार प्रदर्शन किया.
राजवी गांव की बेटियों को स्टेट और नेशनल प्लेयर बनाने के बाद लगातार जारी इस संघर्ष को याद कर छाती चौड़ी कर कहते हैं कि विपरित परिस्थितियों में यहां की बेटियों ने सफलता के झंडे गाड़े हैं. राजस्थान को 60 साल बाद अंडर-17 नेशनल फुटबॉल चैंपियनशिप में सिरमौर बनाया है. पहले कोई भी बीकानेर के ढिंगसरी की बेटियों को जानता तक नहीं था लेकिन चैंपियन बनी तो हर कोई इनको गूगल पर तलाशने लगा. इस दौरान वे खेलों में हो रही राजनीति पर भी बात करते हुए अपील करते हैं कि टीम में खिलाड़ी सेलेक्शन के दौरान फोन क्लचर बंद होना चाहिए. उन्होंने कहा के राजनीति में भले ही नीत नए खेल हों लेकिन खेल में राजनीति नहीं होनी चाहिए क्योंकि खेल तो खेल की भावना से ही खेला जाता है.
बता दें कि विक्रम सिंह के पिता मगनसिंह राजवी भारतीय फुटबॉल टीम के कप्तान रहे हैं. उनके कप्तान रहते हुए भारतीय टीम ने 10 से ज्यादा इंटरनेशनल टूर्नामेंट खेले और छठे एशियन गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल जीता था. मगन सिंह अब करीब 82 साल के हो गए हैं और बीकानेर में रहते हैं. उनका हमेशा से सपना रहा कि गांव के बच्चे फुटबॉलर बनें. उनका यही सपना पूरा करने के लिए विक्रम सिंह राजवी लगातार तटस्थ हैं. 78 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर बीकानेर मंडल के कोलायत स्टेशन पर कार्यरत फुटबाल कोच विक्रम सिंह राजवी को बालिकाओं को खेल में प्रोत्साहित करने के उल्लेखनीय कार्य के लिए सम्मानित किया गया.