महाराजा सूरजमल की मूर्ति सम्मान का प्रतीक है, लेकिन सम्मान वहीं पूरा होता है जहां लोगों की ज़िंदगी आसान हो. नागौर के जोधियासी में विवाद यही सवाल छोड़ गया कि क्या भावनाएं व्यवस्था से ऊपर हो सकती हैं ? ग्रामीण कह रहे हैं कि जगह गलत है, नीयत नहीं. सरकारी दफ्तर, बस स्टैंड और रोज़मर्रा की भीड़ के बीच अगर परेशानी बढ़ेगी तो समाधान कैसे निकलेगा ? दूसरी तरफ मूर्ति लगाने वालों की श्रद्धा भी कम नहीं. पुलिस, प्रशासन, धारा 163 और भारी फोर्स तैनाती के बीच असल मुद्दा यही है कि शांति किस रास्ते से आएगी. नेता अपील कर रहे हैं, गांव वाले समझदारी की बात कर रहे हैं. क्या बेहतर नहीं कि मूर्ति ऐसे स्थान पर लगे जहां सम्मान भी सुरक्षित रहे और जनता की सुविधा भी ? असल समाधान भावना और व्यवहार-दोनों को साथ लेकर चलने में ही है.

